बचपन के खेल खिलौने by Usha Rani Bansal

998
childhood games
बचपन के खेल खिलौने
बचपन में हम इक्कड दुक्कड, सटापू,
गिल्ली डंडा, कंचे , गिट्टे , चूड़ी के टुकड़ों ,
से खेलते थे।
छप्पन-छुपाई ,चोर – सिपाही ,खम्भा- खम्भा ,
मिल मिल कर खेलते थे,
कभी झूला झूलते , कभी पेंग बढ़ाते , रस्सी कूदते ,
कभी कभी पतंग उड़ाते , पतंग काट कर ताली बजाते,
कीरम – काटी खेलते खेलते शाम कर लेते,
तब भी न जीत पाते , न हारते थे।
पेड़ों पर चढ़कर , कभी आम ,
कभी कच्चे पक्के फल खाते ।
कुछ बडे हुए तो लूडो, चाइनीज़ चेकर ,
कैरम , फिर व्यापार खेलने,
खेल खेल में हारने पर लड़ने ,रोने लगे ,
कट्टी- मिली का दौर शुरु हो गया ।
बड़ी क्लास में पहुँचे तो –
लेझियम , डम्बल , बैडमिंटन , बालिबॉल ,
बास्केटबॉल आदि खेलने लगे,
किराये की साईकिल ला कर ,
साईकिल चलाने लगे,
खो खो , लगंडी टाँग,कोड़ा जमारशाही ,
ताश पत्ते भी खेलने लगे ,
लूडो , कैरम , व्यापार, चाइनीज़ चैकर भी ,
खेलो में शामिल हो गये, बड़े होने के साथ –
बचपन के खेल धीरे धीरे छूट गये।
नये दौर में-
बालिवुड के गानों पर अंताक्षरी खेलने ,
सिनेमा देखने , कवि सम्मेलन व नाटकों को देखने ,
उपन्यास , पत्रिकायें पढ कर समय बिताने लगे ।
धीरे धीरे सब खेल पीछे छूट गये ,
समय बिताना कठिन होने लगा ।
बच्चे बडे हो गये ,
विदेशों में जाकर बस गये,
अब बच्चों से मिलने विदेश जाने लगे,
समय बिताने के लिये समय बेसमय
Walking करने लगे ।
वहाँ के बच्चों को दो या तीन पहियों का स्कूटर,

स्केट बोर्ड , स्केटिंग करते देख
हुल्लाहुक पर कमर नचाते,
तरह तरह के साधनों से ,तरह तरह के खेल खेलते देखते तो –

मन एक बार सब खेलने को मचलने लगता।
कभी कभी बच्चों के बच्चों को
अपने बचपन ,साथी – संगियों ,
बचपन के खेलो के बारे में बताते ,
तो- वह पूछँते तब हम कहाँ थे ?
बडी आह भर कर कहते
कि काश ! हम भी वो सब जी पाते,
आप के कितने मज़े थे।
पर समय कहां रुकता है,
जो आज का खेल है,
कल पुराना हो जाता है,
जीवन हर पल आगे आगे बढ़ता जाता है।