Hindi Poem: बचपन के खेल खिलौने by Usha Rani Bansal

1773
Children Playing
बचपन में हम इक्कड दुक्कड, सटापू,
गिल्ली डंडा, कंचे , गिट्टे , चूड़ी के टुकड़ों,
से खेलते थे।
छप्पन-छुपाई ,चोर – सिपाही ,खम्भा- खम्भा ,
मिल मिल कर खेलते थे,
कभी झूला झूलते, कभी पेंग बढ़ाते, रस्सी कूदते ,
कभी कभी पतंग उड़ाते, पतंग काट कर ताली बजाते,
कीरम – काटी खेलते खेलते शाम कर लेते,
तब भी न जीत पाते, न हारते थे।
पेड़ों पर चढ़कर, कभी आम ,
कभी कच्चे पक्के फल खाते ।
कुछ बडे हुए तो लूडो, चाइनीज़ चेकर ,
कैरम, फिर व्यापार खेलने,
खेल खेल में हारने पर लड़ने,रोने लगे ,
कट्टी- मिली का दौर शुरु हो गया ।
बड़ी क्लास में पहुँचे तो –
लेझियम, डम्बल, बैडमिंटन, बालिबॉल,
बास्केटबॉल आदि खेलने लगे,
किराये की साईकिल ला कर ,
साईकिल चलाने लगे,
खो खो, लगंडी टाँग,कोड़ा जमारशाही ,
ताश पत्ते भी खेलने लगे,
लूडो, कैरम, व्यापार, चाइनीज़ चैकर भी,
खेलो में शामिल हो गये, बड़े होने के साथ –
बचपन के खेल धीरे धीरे छूट गये।
नये दौर में-
बालिवुड के गानों पर अंताक्षरी खेलने,
सिनेमा देखने, कवि सम्मेलन व नाटकों को देखने,
उपन्यास, पत्रिकायें पढ कर समय बिताने लगे ।
धीरे धीरे सब खेल पीछे छूट गये ,
समय बिताना कठिन होने लगा ।
बच्चे बडे हो गये ,
विदेशों में जाकर बस गये,
अब बच्चों से मिलने विदेश जाने लगे,
समय बिताने के लिये समय बेसमय
Walking करने लगे ।
वहाँ के बच्चों को दो या तीन पहियों का स्कूटर,
स्केट बोर्ड , स्केटिंग करते देख
हुल्लाहुक पर कमर नचाते ,
तरह तरह के साधनों से ,तरह तरह के खेल खेलते देखते तो –
मन एक बार सब खेलने को मचलने लगता।
कभी कभी बच्चों के बच्चों को
अपने बचपन ,साथी – संगियों ,
बचपन के खेलो के बारे में बताते ,
तो- वह पूछँते तब हम कहाँ थे ?
बडी आह भर कर कहते
कि काश ! हम भी वो सब जी पाते,
आप के कितने मज़े थे।
पर समय कहां रुकता है,
जो आज का खेल है,
कल पुराना हो जाता है,
जीवन हर पल आगे आगे बढ़ता जाता है।